Tuesday, March 23, 2010

नवस्वप्न

मधुर स्मृतियों का आलिंगन
हर क्षण को महका जाये
नव स्वप्नों की सेज सजा कर
चंचल मन थोडा बौराए
मधुर मिलन की आस लगा
खुशियों का झुरमुट मचलाए
नव जीवन के नव स्वपन संजो
मुखड़े पर रौनक आ जाये
आँख का काजल, मुख की लालिमा
खुशियों में झूमे इठलाए
हर्ष रुपी पंखुड़ियों संग
जीवन गुलदस्ता मुस्काए

घर आँगन की चहकती बिटिया
होगी शोभा कल पर घर की
यह सोच सोच पिता का मन
हर पल नम होता चला जाये

नोक-झोंक की नटखट यादें
लगे शीत की गुनगुनी धूप सी
उन भावों में आनंदित हो
भाई का दुलार उमडा जाए
प्यारी बिटिया की अलहड़ मुस्कान
माँ की ममता को छू जाये

उन यादों में उल्लासित हो
माँ का स्नेह भी छलका जाए
यादों में बसी वो अनमोल छवि
बरबस पलकों को भिगा जाए
रिमझिम फुहार सी अश्रुधार
नयनों को गीला कर जाए

उक्त कविता के माध्यम से मैंने विवाह बंधन में बंधने जा रही युवती एवं उसके निकटतम परिजनों की हिलोरे लेती भावनाओ को चित्रित करने का प्रयास किया है, मेरे इस प्रयास पर आप सभी के सुझाव आमंत्रित हैंi

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